भाषते इति भाषा
नमस्कार पाठकवृंद!
विचारों का आदान-प्रदान हमारे जीवन का बहुत ही महत्वपूर्ण भाग है जिसका सबसे प्रसिद्ध माध्यम भाषा है। भाषा पद की परिभाषा है "भाषते इति भाषा" जिसका सीधा सा अर्थ है जो बोली जाती है वही भाषा है। भाषा-विज्ञान में भाषा के कई आयामों पर अंदरूनी चर्चा और संशोधन किया जाता रहा है।
मात्र मनुष्य ही नहीं पशु-पक्षी भी संदेश भेजने के लिए भाषा का प्रयोग करते रहे हैं और यहीं से आवर्त होता है भाषा के स्तर का विचार। 1970 के दशक में हुए शोधों में कई ध्यान देने योग्य बिंदु सामने आए, और उन कई महत्वपूर्ण बिंदुओं में एक बिंदु यह है कि भिन्न-भिन्न पशुओं की संवाद करने की शैलीयों में, एक स्वरूप सभी में सामान था। सभी पशुओं की भाषा में "एक वाक्य का एक अर्थ" देखने को मिला जिसके कारण उनमें नवीनता और रचनात्मकता की कोई संभावना नहीं थी।
इससे भाषा के एक स्तर का निर्णय हुआ जहां एक वाक्य का एक अर्थ है, इससे इतर श्रेणी की भाषा वह है जिसमें प्रत्येक पद का एक अर्थ होता है, जिसके अंतर्गत बोलचाल की लगभग सभी भाषाएँ आ जाती हैं। परंतु एक भाषा ऐसी भी है जो इससे भी सूक्ष्म स्तर पर कार्य करती है वह है "संस्कृत" जहां प्रत्येक वर्ण का भी एक अर्थ संभव है।
ॐ यह प्रणवाक्षर सभी को विदित है, यह विभु नाद तीन वर्णों की सन्धि से बना है। प्रथम वर्ण अकार जिससे पालनकर्ता श्रीविष्णु व्यक्त होते हैं, द्वितीय वर्ण उकार जिससे प्रलयकर्ता उमेश अर्थात् शिव और तृतीय वर्ण मकार जिससे सृष्टिकर्ता ब्रह्मा व्यक्त होते हैं। अ+उ+म् = ॐ इस प्रकार छोटी से छोटी ध्वनि में भी अर्थ की शक्ति जिस भाषा में है वह संस्कृत ही है। यह सूक्ष्म गुण इस भाषा के माध्यम से की जाने वाली अभिव्यक्ति के लिए दसों दिशाओं में व्यापकता को स्थित करता है।
संस्कृत भाषा के सभी वर्णों को माहेश्वर सूत्रों में व्यवस्थित रूप से संकलित किया गया है :-
१. अइउण् ८. झभञ्
२. ऋऌक् ९. घढधष्
३. एओङ् १०. जबगडदश्
४. ऐऔच् ११.खफछठथचटतव्
५. हयवरट् १२. कपय्
६. लण् १३. शषसर्
७. ञमङणनम् १४. हल्
"अल्पारम्भः क्षेमकरः" अर्थात् अल्प से आरम्भ करना श्रेयस्कर होता है। अतः आज के लेख को यहीं समाप्त करते हैं। आगे के लेखों में संस्कृत भाषा की अन्य विधाओं और वर्तमान में उसकी उपादेयता पर चर्चा की जाएगी। उपरोक्त विषय में आपके विचार भी आमंत्रित हैं। जिन्हें आप टिप्पणी के माध्यम से कह सकते हैं।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें